Thursday 4 June 2020

वृक्ष वीरांगनाओं की शोर्यगाथा

आज फिर ' विश्व पर्यावरण दिवस ' पर हम.सब अपने '- जीव - जगत ' के जीवनदायी पर्यावरण के संबंध में चिन्तित होते हुए बहुत कुछ बातें ,सेमिनार , लेखों और वेबिनार के माध्यम से व्यक्त करेंगे। राष्ट्राध्यक्षों की ओर से भी वक्तव्य ,घोषणाओं आदि भी आमजनों के लिए जारी की जाएंगी ! चर्चा यह भी ,जो पहले से ही चल रही है , कि इस लॉकडाउन के दौरान हमारे पर्यावरण को बहुत सुंदर ,साफ - प्रदूषण रहित कर दिया है। नदियों का जल पहले से अधिक निर्मल., पहाडों की आबोहवा कहीं अधिक प्राणदायिनी हो गई है, महानगरों के वायुमंडल में माइक्रो पार्टिकल्स का स्तर नॉरमल हो रहा है आदि आदि !  इस सबके बीच वही बातें दोहराने का क्रम जारी रहेगा : ' हमें यह करना चाहिए ! हम अपील करते हैं कि पर्यावरण से छेड़छाड़ न करें ! ,अधिक से अधिक पेड़ो को लगाया जाये , नदियों को स्वच्छ करने के अभियान में सहयोग करें ! ' आदि आदि -- एक फॉइलों में दर्ज निर्धारित प्रक्रिया जो हमेशा की तरह बस रस्म अदायगी भर ही रह  जाती है ।
पर्यावरण की रक्षा और संरक्षण के क्षेत्र में हमारे देश की महिलाओं का योगदान , उनकी भागीदारी स्मरणीय ही नहीं वंदनीय भी है। राजस्थान की मरुधरा वीरों की महान गाथाओं के लिए तो जानी ही जाती है पर यहाँ के गौरवशाली इतिहास में महिलाओं के उत्सर्ग की भी अनेक घटनाएं लिपिबद्ध हैं। पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र मेंं भी ' अमृता देवी ' और उनकी अन्य सहयोगी महिलाओं का नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित है। यह ' खेजड़ली ' आंदोलन के नाम से याद किया जाता है ।
" सिर साटे रूख रहे, तो भी सस्तो जान ! "
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यह हमारी राजस्थानी लोकोक्तियों में प्रचलित है:: इसका तात्पर्य है कि : " यदि सिर कटबाने पर वृक्षों की रक्षा होती हो तो भी यह सौदा बहुत सस्ता है !"  यह एक कथन मात्र ही नहीं ,जीवनशैली है ! वृक्ष पूजनीय हैं ,वंदनीय हैं ,उनकी रक्षा करना हमारा परम कर्तव्य है ! यही है विश्नोईयों के गांवों में जीवन मंत्र ! आइए इसी से जुड़े महिलाओं के बलिदान की शोर्यगाथा : खेजडली आंदोलन
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रजवाड़ों के समय के राजस्थान में 1730 में जोधपुर रियासत के एक छोटे से गांव ' खेजड़ली ' के स्थनीय शासक के आदेश पर मरुधरा के जीवन से जुड़े ' खेजड़ी ' ( यह संस्कृत और पौराणिक साहित्य का बहुत प्रसिद्ध- " शमी " वृक्ष -- जिसका पूजन श्री राम ने लंकेश पर विजय अभियान से पूर्व किया था।) वृक्षों को काटने पहुंचे '  राज' ' के कारिंदों को विश्नोई समाज की महिलाओं के दल ने रोकने का प्रयत्न किया ।  ' अमृता देवी ' इस समूह का नेतृत्व कर रहींं थीं । अड़ियल कारिंदे काटने पर आमादा थे। इन वीरवालाओं ने खेजड़ी वृक्षों को काटने से बचाने के लिए उनसे चिपक कर चुनौती देने का साहसपूर्ण निर्णय किया। कारिंदे कहाँ मानने वाले थे..एक एक करके 383 लोगों ने अपने जीवन की आहुति इन वृक्षों की रक्षा में झोंक दी। इस स्वतः स्फूर्त आंदोलन में अमृतादेवी की तीन बेटियों ने भी अपने प्राणों का बलिदान कर दिया। मानव जाति के इतिहास में वृक्षोंको बचाने हेतु जीवन समर्पित कर देने वाली वीरांगनाओं का शायद यही अनूठा- अकेला विश्वकीर्तिमान हो ! 
उत्तराखंड का चिपको आंदोलन :
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यह 1974 के उत्तराखंड के ' चमोली 'में महिलाओं द्वारा वृक्षों की कटाई के विरोध में चलाया गया ' चिपको आंदोलन ' ! 25 मार्च को ' गौरा देवी ' के नेतृत्व में 27 महिलाओं के समूह.ने मजदूरों को पेड़ों को काटने से रोकने के लिए पेड़ों से  ' चिपट कर ' खड़े होने का निश्चय किया । सुंदरलाल बहुगुणा और साथियों के साथ यह भी व।क्षों को बचाने की एकमात्र कोशिश रही थी।
उत्तराखंड हिमालय क्षेत्र के संवेदनशील भूस्खलन. की भूमि है।अनेकानेक विकास की गतिविधियों से यहाँ बहुत कठिन पारिस्थितिकीय संकट के संकेत विनाशकारी वाढ़ ,भूस्खलन ,भूकंप आदि के रुप मेंं सामने आते रहे हैं। ग्लोबल वार्मिंग ,आदि अनेक कारणों से खतरा बढ़ ही रहा है ।जरूरत  इसके रोकथाम के उपायों को कारगर तरीकों से संचालित करने की है। आशा है कि हम अपनी प्रकृति से प्रेमपूर्ण व्यवहार करेंगे और सार्थक प्रयास भी ! शुभम्सतु कल्याणं !
जय ! जय !
बोधिपैगाम
05.06.2020



Thursday 14 May 2020

अतीत के झरोखे से - उठते प्रश्नचिन्ह ?

यह कैसे लोग थे ? कौन थे ? क्या सच.में ही ऐसे होते थे ? क्या यह सब कल्पनाओं का जाल तो नहीं ?

 अपने आप अपनी मृत्यु का रहस्य खोलने वाले! सच में क्या ?   महाभारत सीरियल के '  लॉकडाउन  '  कालखंड में इसके पुनः प्रसारण ने हमारे सामने अनेकानेक प्रश्नचिन्ह. खड़े कर दिए हैं । विश्व की महान  धरोहरों मे से एक भारत के गौरवशाली अतीत , उसके महापुरुषों की अमर कथा महर्षि वेदव्यास की ' महाभारत 'की महान गाथा ! 

 क्या यह निर्लज्जता नहीं थी  कि शिखंडी की आड़ लेकर
भीष्मपितामह  को अर्जुन जैसा योद्धा अपने वाणों से बींध देता है। अब अतीत के इस कृत्य को भी आज के' ' युद्ध और प्रेम मेंं सब जॉयज है ' इसी कसौटी पर सही ठहराया जाये ?
हो भी क्यों न जहाँ श्रीकृष्ण जैसा चतुरसुजान राजनीतिज्ञ हो वहाँ सब सभंव है , है कोई संशय ? धराशायी हुई इच्छामृत्यु का अधिकारी ! सत्य ,निष्ठा ,संकल्प और प्रतिज्ञाओं से आबद्ध महामानव ;  अंधत्व -महात्वाकांक्षी , पुत्रमोही  हस्तिनापुर साम्राज्य का रक्षक आज युद्धके मैदान में अभी भी हस्तिनापुर के सुरक्षित रहने की अमर कामना लेकर उत्तरायण के इंतजार कर रहा है । 

भारतवर्ष के इतिहास का यह पृष्ठ अद्भुत, अद्वितीय वीरता का एक दिव्य प्रमाण है । अर्जुन को भी अपने इस कृत्य पर शायद जीवन भर पछतावा रहा होगा ! विजयी अर्जुन को भी यह कायरता कचोटती रही होगी।
 विवशताओं की यह महागाथा , बचनों की श्रंखलाओं से बंधे महापुरुषों की बात ही कुछ निराली है -- अपूर्व ! मारनेवाला भी अश्रुपूरित आँखों से दूसरे पक्ष के अपने ही संबंधी पर वाणों की वर्षा करता है तो दूसरा भी सहर्षता से उसी पल प्रत्युत्तर में बौछार करदेता है।
  संदेह , अपने ही पक्ष के योद्धाओं की निष्ठा पर शंका , बारबार नेतृत्व द्वारा प्रमाण की कामना  , -- कौरवों के दल में निर्णय की  और उनकी दक्षता पर शंकाओं के संबंध में बारबार प्रश्न उठाने की आदत ने महावीरों कोभी भ्रमित कर दिया था।

छल ,कपट से रची गई रणनीति द्रुयोधन का अस्त्रशस्त्र. था और उसकी काट का एकमात्र विकल्प श्रीकृष्ण की राजनीतिक सूझबूझ. उनकी दूरदृष्टतापूर्ण समझभरी सलाह थीं। एक तरफ अंधी मोह- माया विवेकपूर्ण विदुर वाणी को भी अनसुना कर दिया गया। हित- अनहित का विवेचन ही खोऐ धृतराष्ट्र ठूंठ के समान चेतना शून्य सा हो गया था।

अभिमन्यु वध एक कायराना कारनामा ,देखते देखते अश्रुपूरित आँखों से कैसे देखा गया...कोई शब्द... आर्तनाद ....निहत्थे युवक पर उस समय के दुर्दांत , सात - सात महावीरों ने एकसाथ मिलकर ..मानवता...?  

महाभारत इन भयावह घटनाओं का दिग्दर्शन कराता है । जहाँ भीष्मपितामह अपनी ही मर्यादाओं के भ्रमजाल मेंं फँसे हुए थे।

राष्ट्र से बडा़ कुछ भी नहीं ? कोई भी नहीं ? कोई प्रतिज्ञा का अहंकार तो बिल्कुलभी नहीं ? भीष्पितामह का शरशय्या पर युधिष्ठिर से राज्य , नीति ,आंतरिक और व्यक्तिगत आकांक्षाओं से सर्वथा निर्लिप्त संदेश विचारणीय है !  महाराज भरत के वशंज , शान्तनु के महान पुत्र ' देवव्रत ' राजनीति की शिक्षा  - अपने अतीत की गलतियों , भ्रान्तियों की स्वीकृति करते हुए विदा होते हैं। महाभारत का अंत -- अतीत का अंत , नवयुग का शुभारंभ ! 

यह महान कथा हमारे बीच बैठे ,धृतराष्ट्रों , शकुनियों , दुर्योधनों को पहचानने, जाननें और श्री कृष्ण के  पार्थसारथी रुप में अनुपम ' गीता ज्ञान ' को आत्मसात कर , कर्मयोगी बनने की शिक्षा देती है। 
जय ! जय !
© बोधिपैगाम 


Tuesday 17 March 2020

जनसेवक का त्याग

' जन हित सब.सुखभवन त्यागे ! ' 
अब क्या बताऐं! इन दिनों हमें किन किन लाचारियों से गुजरना पड़ रहा है ! अपने अपने घरों से दूर दराज राज्यों के' रिसॉर्ट्स  ' में समय काटने को मजबूर हैं। ' पंचसितारा ' सुविधाओंं के सुरक्षित ' पर्सनल ' कमरों में " कोरोना " जैसे ' क्वरनटॉइंन ' में रह रहे हैं। मजबूरी है भाई ! अपने अपने राज्य के गरीब किसानों , दलितों ,माफिया पीड़ित जनता की सेवा के लिए जनविरोधी ताकतों के प्रयासों को नाकाम जो करना है ।

अरे ! यह कया कह रहे हैं , आप ? यह चिंता हमें नहीं होगी तो किसे होगी ,भला ? हम ही तो जनता के नुमाइंदे हैं । हमें जनता के लिए कुर्बानी देनी होगी तो देंगे। इसके लिए पार्टी छोडऩे का फैसला लिया है ,अब यही ' जुगाड़ ' है कि उनका दामन थामेंं जिनके पास जनता की भलाई का ' फार्मूला ' है। अब यह हमारी पार्टी तो बिल्कुल बदल चुकी है। अब वो बात नहीं ! इसमेँ रहकर जनसेवा नहीं हो सकती । हमने क्या नहीं किया ? यहाँ ' दशकों ' से रहकर देख लिया - पर आवाम की आवाजें सुनी ही नहीं जाती हैं। आम लोगों के हालात वही हैं- ' गरीबी रेखा ' बहीं की बहीं है , जरा भी नहीं खिसकी । अब हमारी हालत ही देख लो - ' क्या बदला ? अरे एक लड़के को भी तो कोई अच्छा सा ठेका नहीं दिलवा सके ! यहाँ तक कि गाँव के स्कूलों में फर्नीचर नहीं , शोचालय भी शोचनीय है । सडकों के लिए भी ठेका भूतपूर्व प्रधान के रिश्तेदार को मिल गया । अब आप बताइये क्या करें ? 

हम इन हालातों में चुपचाप हाथपर हाथ धरे  बैठे तो रह नहीं सकते । आखिर हमारी जिम्मेदारी बनती हैं , जनता ने हमें बोट दिया है तो क्या हम उनके हितों के लिए ' त्याग ' नहीं करें ? हमने बहुत सोचा ,बहुत वार. पार्टी के 'आलाकमान ' तक संदेश भिजवाऐ , अपने ' ट्विटर ' एकाउंट का ' लोगो ' भी हटाकर संकेत दिए - पर.उनकी तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं । उधर दूसरी तरफ से उनके दूत पर दूत संदेश लेकर आते रहते - " अरे भाई ! आजाओ ,क्यों अपना और जनता का भविष्य भाड़ में झौंक रहे हो ? सब सुविधाओं के साथ ' प्रधान सेवक " के साथ उठने बैठने का मौका मिलेगा । ठेका ,पोस्टिंग ,ट्रांसफर आदि सबमें आपका हिस्सा पक्का । ' दूर दृष्टि - पक्का इरादा ' - समय की चाल को समझो !" अब आप ही बताईए हम ऐसा मौका कैसे गंवा देते ?  अब.हमें चाहे कितने भी दिन ' रिसॉर्ट्स ' मे रहते हुए काटने पड़ें - हम पीछे हटने वाले नहीं। मुफलिसी में जीवन बिताने को मजबूर जनता की खातिर हमें पार्टी तोडऩे और दूसरे दल के साथ जुडऩे का यह मौका कैसे गंवाए- गंभीरतापूर्वक सोचते हुए यही रास्ता साफ दीखता है।

क्या कहा ' सिंद्धांत - निष्ठा ' ?  सिद्धांत- निष्ठा किसके लिए ,किसके प्रति ? जनता के लिए -जनता के प्रति ! यही तो जनतंत्र का तकाज़ा है । हम भी तो इसी पर काम.कर रहे हैं। जिस काम में जनता का हित , जनता की भलाई होती हो वो पहले !  पार्टियों का क्या है ?  इसके लिए यदि पार्टी तोड़ने  की भी जरूरत हो तो वोभी करेंगे ।अब यदि पार्टी  " हमारे"
 और " जनता " के बीच रूकावट बने तो उससे निष्ठा कैसी ?हम.उन पुराने '  पिछलग्गू ' नेताओं जैसे तो हैं नहीं कि पूरी जिंदगी बस " जाजम बिछाने- उठाने " , रैलियों के इंतजाम ,भीडभाड़ की व्यवस्था "  में ही लगे रहे ंं ।हमारे सपने - हमारी आकाँँक्षाऐं तो आम जनता के साथ जुडी हुई हैं । उन ' सबा करोड़.हिंदुस्तानियों ' और ' सबका साथ सबका विकास ' की बात को कोई कैसे भुला सकता है । सबका विकास तो हमारे विकास की बात पीछे कैसे रह सकती है। 

 " नैतिकता और अवसरवादिता? " अरे भाई ! आप.भी यह कौन से जमाने की बात उठा रहे हैं ?  नैतिकता का मतलब तो आदर्श स्थिति जिसमें -'  बंदा  मुँह - आँख - कान बंद करे गांधी के तीन बंदरों सा पार्टी का बंधक फरमाबरदार बना रहे । यह तो नया जमाना है, नयी रीति है - " देश - धर्म " की खातिर पार्टी तो क्या इस दुनिया-जहान को भी छोड़ना देशभक्ति है !  " जोड़ - तोड़ " राजनीति का एक प्रमुख औजार है । राजनीति का यह गुर जानेवाले धुरंधरों को ही आधुनिक ' चाणक्य ' की उपाधि से नवाजा गया है। देश- प्रदेश को ऊँचाई पर ले जाने के लिए इस तकनीकी कुशलता में पारंगत होना एक विशेष योग्यता मानी गई है । यह अवसरवादिता नहीं वरन दूरदर्शिता कहलाती है ।राजनीति की ' दशा और दिशा ' को देखकर , उसकी मांग के अनुरूप " स्ट्रेटेजी " बनानी होती है। अगर आप में इतनी भी समझ नहीं तो बस ' हाशिए ' पर पडे़ रहिए । लेकिन हम.इतने बेगैरत और गये- गुजरे भी नहीं कि " बक्त की नब्ज " न पकड़ सकें कि -' हम देखते रह जायें और माल दूसरे चूसते रहेंं !' हम.तो ठहरे ' प्रोफेशनल ' - ' डिजिटल युग ' में ' डाटा ' पर पूरी पकड़ रखते हैं। अब देखो न हमारे पंत प्रधान ने तो पहले ही सावचेत किया कि --" इस युग में जो डाटा पर मजबूत पकड़ रखेगा वहीं राज करेगा !" अब.हम.तो मौका भांपते ही  ' दलबदल ' करने से नहीं चुकने वाले । अब चाहे हमें ' मौकापरस्त ' ही क्यों न कहें ! हम तो तुरन्त ' ऐक्शन ' में आ जाते हैं। अरे यह तो कहा भी गया है कि ' नीति ' वहीं जो ' राज.' के साथ हो तब ही तो राजनीति कहलाती है । और भईया - हमारे नीतीश तो ' नीति ' के राजगुरु हैं, पासबान कोऊ भुला सके है भला ।
जय ! जय !

Friday 7 February 2020

मन की उड़ान

हुआ यह कि एक तितली मेरे आगे आगे उड़ती जाये , मैं जिधर मुड़ूँ वह भी उधर मुड़े । पत नहीं उसे यह कैसे भ्रम हुआ कि मैं उसका पीछा कर रहा हूँ। मैंने बहुत कोशिश की मैं अपने रास्ते पर जाऊं पर वह तो मेरे ही रास्ते पर आगे आगे ...। अब मुझे लगा कि वास्तव में मैं ही उसका पीछा तो नहीं कर रहा हूँ ? या वह मेरा मार्गदर्शन कर रही थी ! अब तो हद हो गई जब वो मेरे सिर पर ही मंडराने लगी । मैं उड़ाऊँ ,पर वो फिर लौट कर फिर मंडराने लगे । शायद यह मेरे बालों की गंध ही उसे आकर्षित कर रही थी।,पता नहीं ?  बहुत देर तक यह खेल चलता रहा फिर अचानक ही वो कहीं दूर खो गई।

मेरे साथ कमरे में भी ऐसा ही होता है ।जब कोई मक्खी बार बार ..सिर पर ,कभी हाथ पर, कभी अखबार पर ,किताब पर आकर बैठ जाती है । उड़ाने पर ?फिर उसी पल फिर आ कर बैठ जाती है ।मैं बहुत हैरान होता हूँ ..यह भी हद हो गई परेशान करने की ! गुस्सा भी बहुत आता ..गुस्से में अखबार, किताब से ही उस पर टूट पड़ता ! पर यह क्या ? उस पर तो कोई असर ही नहीं ? इधर से उड़कर फिर दाहिने हाथ पर ,या पैर पर ! ..बस उसे आसपास ही बने रहना है । क्या वह.मुझे चाहती है ? या यही कुछ मेरीही चाहत है ? यहां मेरे पास क्या है , जो उसे आकर्षित कर रहा है ? कुछ भी तो मेरे पास ऐसा नहीं ? मैं सोच में डूब गया.. अरे ! यह उसकी मेरे पास बैठने की इच्छा ही ...या यह भी मेरे शरीर की गंध.है जो उसे खींच लाती है । शरीर की अपनी गंध होती है.. पशु..पक्षी सभी एक विशिष्ट गंध रखते हैं.. गंध के प्रति संवेदनशील.! मैं. विचारों में डूब गया.. क्या ' गंधर्व ' जो ' गंधमादन ' पर्वत पर रहते थे , उनका ही वंशज तो नहीं ? 

रात को एक मच्छर कान.के पास आकर भिनभिनाहट करते हुए पता नहीं क्या कहना चाहता है ?  शायद , " बच्चू ! कहाँ तक बचोगे ! मैं तो तुम्हारा खून पीकर ही रहूंगा ! जरा सा ! बस जरा सा ! " सब.तरफ से ढ़क कर सोने पर भी पत नहीं वो भिन भिन की आवाज आने लगती है । अब कितनी ही कोशिश करें पर यह महाशय आही जाते हैं। अचानक मुझे लगा अरे हनुमानजी भी तो सब तरह से रक्षित लंका में ' मसक समान रुप धरि ' ; प्रवेश करने में सफल हुए थे ! यह भी कोई ऐसा ही ..! 

Thursday 31 October 2019

PHILOSOPHY OF LIFE

A boat docked in a tiny Mexican fishing village.
 
 A tourist complimented the local fishermen on the quality of their fish and asked how long it took them to catch it.
 
 "Not very long." they answered in unison.
 
 "Why didn't you stay out longer and catch more?"
 
 The fishermen explained that their small catches were sufficient to meet their needs and those of their families.
 
 "But what do you do with the rest of your time?"
 
 "We sleep late, fish a little, play with our children, and take siestas with our wives.
 In the evenings, we go into the village to see our friends, have a few drinks, play the guitar, and sing a few songs.
 
 We have a full life."
 
 The tourist interrupted,
 
 "I have an MBA from Harvard and I can help you!
 You should start by fishing longer every day.
 You can then sell the extra fish you catch.
 With the extra revenue, you can buy a bigger boat."
 
 "And after that?"
 
 "With the extra money the larger boat will bring, you can buy a second one and a third one and so on until you have an entire fleet of trawlers.
 Instead of selling your fish to a middle man, you can then negotiate directly with the processing plants and maybe even open your own plant.
 You can then leave this little village and move to Mexico City, Los Angeles, or even New York City!
 
 From there you can direct your huge new enterprise."
 
 "How long would that take?"
 
 "Twenty, perhaps twenty-five years." replied the tourist.
 
 "And after that?"
 
 "Afterwards? Well my friend, that's when it gets really interesting, " answered the tourist, laughing. "When your business gets really big, you can start buying and selling stocks and make millions!"
 
 "Millions? Really? And after that?" asked the fishermen.
 "After that you'll be able to retire,
 live in a tiny village near the coast,
 sleep late, play with your children,
 catch a few fish, take a siesta with your wife
 and spend your evenings drinking and enjoying your friends."
 
 "With all due respect sir, but that's exactly what we are doing now. So what's the point wasting twenty-five years?" asked the Mexicans.
 

 And the moral of this story is:
 
 Know where you're going in life....
 you may already be there..

Monday 10 April 2017

बहस का दंगल

मानव विकास क्रम में विचारों का बहुत महत्वपूर्ण स्थान रहा है । मनुष्य ने अपने सामने पेश आई चुनौतियों का, समस्याओं का समाधान अनेक ढंग से ढ़ूंढा  है । हर समय की अपनी समस्याएं  ,अपने प्रश्न रहे हैं, उस समय की चुनौतियों ने मनुष्य को विचार करने, चिंतन, मनन करते रहने को बाध्य किया । उसी विचारों के विवेचन से  समाज चेतना और विकास के धरातल पर आगे बढ़ता रहा । यहाँ यह बात भी ध्यान देने की है कि हर समय, परिस्थिति व क्षेत्र विशेष की समस्याएं भी अलग-अलग होने से उनका हल भी अलग -अलग तरीके से ही हुआ ।
      आज हम उस दौर से बहुत आगे निकल आये हैं । विश्व के अलग-अलग क्षेत्रों, परिस्थितियों व समय पर किए गए प्रयास सब हमारे  सामने हैं  । यह धर्म, शिक्षा, संस्कृति, नैतिकता के रूप में अपने - अपने  दृष्टिकोण को प्रस्तुत करते हैं  । दूसरी ओर विज्ञान व तकनीक के प्रसार व व्यापक उपयोग ने हमें बहुत अधिक सुविधाभोगी, शक्तिशाली, संसाधन सम्पन्न बना दिया है ।विज्ञान  की चमत्कारपूर्ण शक्ति के बलबूते इस धरती के परे के ग्रहों, नक्षत्रों की विशद खोज ,कृत्रिम मेधाशक्ति से संचालित कृत्रिम मानव (रोबोट ) ,यहाँ तक की प्रयोगशाला में नये जीव के विकास तक की संभवनाओं के  साथ -साथ मनुष्य की जीवनी शक्ति कोभी श्रेष्ठतर करने के प्रयासों ने  ,जीवन की बेहतरी के नये आयाम दिए हैं । यह असीमित संभावनाओं के द्वार ,नये नये  विचारों के साथ पुरानी मान्यताओं, दृष्टिकोणों, नैतिकमूल्यों विश्वासों पर भी  चोट करते  नजर आ रहे हैं ।आज हर तरफ़, हर तरह के विचारों, मूल्यों, मान्यताओं का विश्लेषण किया जा रहा है ।

     आज बहुत तीव्रगति के संचारमाध्यमों के  कारण विचारों का आदान -प्रदान बड़ी सरलता से ,विस्फोटक रूप  से संभव हुआ है । आज यह बहस या संवाद के रूप में विभिन्न विचारधाराओं के संगम के समान एक साथ हमारे सामने आ जाता है । विचारों की विविधता निश्चित रूप से हमारी संकुचित दृष्टि को व्यापक आयाम देती है । विचारों के खुले विमर्श से एक सुंदर, खुशहाल जीवन की संभावना नज़र आती है ।जितना ज्यादा विविधता,  विरोधी विचारों पर खुल कर मंथन करने का मौका मिलेगा उतना ही  सशक्त  और सबल हमारा मानव समाज होगा ।
   
     आज वैश्विकरण के युग में सब को साथ लेकर चलना होगा  । विचार - विनिमय परस्पर मैत्री भाव को  बनाए रखने में सबसे अधिक कारगर है परन्तु दुख तो यह है कि आज भी बहस से, संवाद से  लोग कतराते दिखाई देते हैं ।हह एक यही मानकर चलता है कि बस बह जो  कह रहा है, सोच रहा है  ,बस बही सत्य है । उसे ही दूसरों को भी  मानना चाहिए । उसका अपना विश्वास ही सही है । यही नहीं जोर-जवर तरीके अपना कर अपनी बातों को मनवाना चाहते हैं । ऐसे लोगों की दृष्टि में बाकी सभी दृष्टिकोण गलत ही नहीं, खुराफाती, निंदनीय, भ्रष्ट करने बाले हैं । इस तरह की  सोच दमनकारी रूप धारण कर, उन्मादी  ,आतंकी विचारों से पोषित होने के कारण समाज में उपद्रवकारी रूप में सामने आकर वैमनस्य फैलाने का कारण बनती है ।
 
     आज आदमी को जरुरत है कि बह बिना किसी एक विचारधारा से  प्रभावित होकर जिए । शायद मुश्किल है, क्योंकि जीने के लिए हमें एक सहारा चाहिए । हम अपने आप को अकेला, अक्षम, निरीह समझ कर किसी के बताये मार्ग पर चलना चाहते हैं । एक पथप्रदर्शक, एक मसीहा  जिसके पीछे -पीछे अंधे की तरह चलते रहें, जैसे हमारे पूर्वज चलते रहे  । हमारा अपने पर विश्वास नहीं है । यह सोच ही हमें एक बाड़े में शामिल कर देता है । यह फिर धर्म, जाति, पूंजीवाद, समाजवाद, साम्यवाद, समतावाद, गांधीवाद, आदी कुछ भी हो सकता है । ओशो ने कहा है, " सभी विचारधाराऐं निश्चित ही युद्ध पैदा करती हैं यहाँ तक की 'शाँति ' पर आधारित, 'शाँति के लिए  ' भी  तो  युद्ध किया जाता है । तो फिर शांति कैसे आसकती  है ? शांति तब ही स्थापित  हो सकती है जब हम सभी विचारधाराओं की मूर्खता को समझकर उसका त्याग कर सकें! "
   

Tuesday 20 December 2011

BEING A CHILD AGAIN

After crossing sixtees  iam enjoying my childhood again. Its a new jeewan. The sages search to find 'WHO AM I'/I am related myself with acheldren academy.Enjoyig with them intheir innocence. It is just like sensetising myself in the company of small boys and girls.Each moment intheir company isanew experience.anew learning.a small bubbly kid rushes  me to help him inhis peeing another time one came with her tiffin .EACH MOMENT BRINGS ANEW JOY. Anew love starts flowing in me.Ifeel anew birth.Iwent there to teach them but in an amazing way they are teaching me.I dont know how to react this situation.I SAW INNOCENCE FACES .I deeply meditate over WHY SOCITY WANTS TOSTUFF THEM WITH ALL SORT OF BORISH KNOWLEDGE/?Adam had his end by taking the fruit of KNOWLEDGE TREEAs OSHO the great mystic of our time has said--- the child brought with him the greatest tresure ,the treasure that sagesfind afterarduous effort.,but socitey .parentes, the people surrounding him crushed it ,destroyed it.'THIS REMOVES HIS SIMPLICITY.Droping knowledge and forgeting all man made moral .philosphy,religious  do's and do.'nts make us again achijd that wemissed in our yrsteyears. THINK OVER IT.